Chaitra Navratri Kawardha

Chaitra Navratri Kawardha: खप्पर दर्शन 2024 चैत्र नवरात्रि कवर्धा: चंडी मंदिर व परमेश्वरी मंदिर से हाथ में तलवार लेकर निकला खप्पर, लगभग डेढ़ सौ साल पुरानी.परंपरा, देखें भव्य नजारा

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Chaitra Navratri Kawardha: कवर्धा – देश में कलकत्ता के बाद छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा और कवर्धा में ही खप्पर निकालने की परंपरा रही। अब यह परपंरा देशभर में केवल कवर्धा में बची हुई है। कवर्धा में दो सिद्धपीठ मंदिर और एक देवी मंदिरों से खप्पर निकाला जाता है।

Chaitra Navratri Kawardha: भारत वर्ष में देवी मंदिरों से खप्पर निकालने की परंपरा वर्षों पुरानी है। प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी आधी रात में चंडी मंदिर व परमेश्वरी मंदिर से एक हांथो में तलवार और दूसरे हांथो में मिट्टी के पात्र में आग लेकर खप्पड़ निकला, जिसे देवी दुर्गा मां का स्वरूप भी माना जाता है। खप्पर को धार्मिक आपदाओं से मुक्ति दिलाने व नगर में विराजमान देवी-देवताओं का रीति रिवाज के अनुरूप मान मनव्वल कर सर्वे भवन्तु सुखिनः की भावना स्थापित करना माना जाता है।

Chaitra Navratri Kawardha: प्रत्येक नवरात्रि पक्ष के अष्टमी के मध्य रात्रि ठीक 12 बजे दैविक शक्ति से प्रभावित होते ही समीपस्थ बह रही सकरी नदी के नियत घाट पर स्नान के बाद दुरतगति से पुनः वापस आकर स्थापित आदिशक्ति देवी की मूर्ति के समक्ष बैठकर उपस्थित पंडों से श्रृंगार करवाया जाता है। स्नान के पूर्व लगभग 10.30 बजे ही माता की सेवा में लगे पण्डों द्वारा परंपरानुसार 7 बजे काल 182 देवी देवता और 151 वीर बैतालों की मंत्रोच्चारणों के साथ आमंत्रित कर अग्नि से प्रज्जवलित मिट्टी के पात्र (खप्पर) में विराजमान किया जाता है।

Chaitra Navratri Kawardha: पूर्व की परंपरा में थोड़ा पृथक कर 108 नीबू काटकर रस्में पूरी की जाती है। इसके बाद किलकारी करते हुए खप्पर मंदिर से निकाली जाती है। खप्पर की वेशभूषा वीर रूपी एक अगुवान भी निकलता, जो दाहिने हाथ में तलवार लेकर खप्पर के लिए रास्ता साफ करता है। मान्यता है कि खप्पर के मार्ग अवरूद्ध होने पर तलवार से वार करता है। खप्पर के पीछे-पीछे पण्डों का एक दल पूजा अर्चना करते हुए साथ रहता है, ताकि शांति बनी रहे। जिसे देखने के लिए श्रद्धालु दूर दूर से पहुँचे हुए थे, इस दौरान पुलिस और जिला प्रशासन की सुरक्षा व्यवस्था बेहद तगड़ा रहा।