Mahakumbh 2025 : नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज स्थित संगम तट श्रद्धालुओं के स्वागत के लिए पूरी तरह से तैयार है। यह वह पावन स्थान है, जहां गंगा और यमुना के साथ अदृश्य सरस्वती का मिलन होता है। संगम तट पर स्नान सिर्फ धार्मिक आस्था का पालन नहीं है, बल्कि यह एकता और सामूहिकता का प्रतीक है। यह वह स्थल है, जहां लोग हर भेदभाव और आवरण को छोड़कर ‘हर हर गंगे’ के समवेत स्वर में एकजुट होते हैं, जो सभ्यताओं और मानवता का अमृत रूप है।
Mahakumbh 2025 : महाकुंभ का आयोजन इस अमृत की खोज का परिणाम है, जिसकी शुरुआत सदियों पहले सागर मंथन से हुई थी। मंदार पर्वत को मथानी बनाकर, वासुकी नाग की रस्सी से सागर मंथन की प्रक्रिया शुरू की गई, जो इस पावन आयोजन का आधार बना।
Mahakumbh 2025 : सागर मंथन के दौरान, देवता और असुर दोनों ने मिलकर वासुकी नाग की रस्सी को खींचा, और मंदार पर्वत सागर में घूमा। इस मंथन से पहले हलाहल विष निकला, जिससे सारा संसार अंधकार में डूब गया। विष के प्रभाव से देवता और असुर जलने लगे, और पृथ्वी पर भूचाल आ गया। तब महादेव ने विष को अपने गले में रोककर अपने कंठ को नीला कर लिया, और इस कारण से उन्हें ‘नीलकंठ’ कहा गया। उनका यह कार्य संसार की रक्षा के लिए था, और इसके बाद महादेव को शीतल करने के लिए जलाभिषेक की परंपरा शुरू हुई।
Mahakumbh 2025 : सागर मंथन से निकले रत्न और अमृत
Mahakumbh 2025 : सागर मंथन से केवल हलाहल विष ही नहीं, बल्कि अनेक रत्न भी प्राप्त हुए। इनमें सबसे प्रमुख थे अमृत, जो अंत में भगवान विष्णु के साथ धन्वंतरि देव के द्वारा प्रकट हुआ। इसके अलावा, पारिजात पुष्प, कल्पवृक्ष, ऐरावत हाथी, और रंभा अप्सरा जैसे अमूल्य रत्न भी मंथन से बाहर आए। इस प्रक्रिया में लक्ष्मी, शंख, कौस्तुभ मणि, और उच्चैश्रवा घोड़ा जैसे दिव्य रत्न भी प्रकट हुए, जिन्होंने स्वर्गीय आभा को और बढ़ाया।
Mahakumbh 2025 : सागर मंथन से निकले इन रत्नों ने न केवल देवताओं की समृद्धि बढ़ाई, बल्कि उन्होंने इस पृथ्वी पर धर्म, सुख, और समृद्धि के प्रतीकों के रूप में अपनी छाप छोड़ी। यही कारण है कि कुंभ मेला, जो सागर मंथन की परंपरा से जुड़ा है, आज भी श्रद्धा, एकता और समृद्धि का प्रतीक बनकर संसार के कोने-कोने से लोगों को आकर्षित करता है।