नई दिल्ली / “इंडिया या भारत ” नाम परिवर्तन को लेकर पुरे देश में राजनीती गरमाया हुआ है प्रेस वार्ता में भारतीय राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस intuc फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामीनाथ जायसवाल ने प्रेस को बताया कि जिस तरह से भारत को उन्नति और प्रगति और विकास का आधारशिला पर चर्चा करना प्रधानमंत्री को गुरेज लगता है।
कोई महंगाई बेरोजगारी पर चर्चा करें तो देशद्रोही हो जाता है जिस तरह से बढ़ती हुई बेरोजगारी देश पर बढ़ता हुआ कर्ज देश का जनता लाचार इनका अदानी से बढ़ता हुआ व्यवहार और व्यापार यहां दर्शाता है कि कमजोर प्रधानमंत्री जिस तरह से इंडिया गठबंधन से भयभीत हुए आज देश को भारत की उस नवनिर्माण करने वाले अगर हमारे पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू इंदिरा गांधी जी और प्रधानमंत्री के द्वारा अगर आईआईएम ,आईआईटी, एम्स, इसरो ,नशा, नहीं बनाया गया होता तो इसी तरह नाम बदलने पर खाली कम होते रहता कभी इंडिया कभी भारत रखने से विकास होता है. तो नाम बदलते रहे प्रधानमंत्री जी लेकिन देश का विकास समुचित सब अच्छा सोच अच्छा विचार की वजह से चलता है.
लोगों के त्याग तपस्या और बलिदानी पर आधारित है इस देश को चमकाना है तो विकास और मजबूती से धैर्य के साथ जीता जा सकता है और इंडिया जीतेगा क्योंकि देश के 140 करोड़ जनता का विश्वास जीतेगा और आने वाले समय में 2024 में परिवर्तन लहर है इसलिए प्रधानमंत्री मोदी जी को डर है इंडिया शाइनिंग’ और ‘डिजिटल इंडिया’ का प्रचार-प्रसार करनेवाली भारतीय जनता पार्टी को अचानक से ‘इंडिया’ नाम से भला गुरेज क्यों होने लगा है? हम मोदीजी को बता देना चाहते हैं कि हम तो ‘भारतवासी’ ही हें और ‘भारत’ नाम से हमको उतना ही प्रेम है जितना सम्मान हम ‘भारत’ को देते हैं।
हम ‘इंडिया’ और ‘भारत’, दोनों नामों में गर्व महसूस करते हैं। इसरो, आईआईटी, आईआईएम, आईपीएस। इन सभी में ‘आई’ का मतलब इंडिया है। लेकिन बीजेपी सरकार ‘इंडिया’ गठबंधन से इतना डर गई है कि बेबुनियाद काम कर रही है। हज़ारों साल पुराना हमारा देश है, उसका नाम केवल इसलिए बदला जा रहा है कि ‘इंडिया’ एलायंस बन गया है।
स्वामीनाथ जायसवाल ने कहा कि बीजेपी को लग रहा है कि ऐसा करने से ‘इंडिया’ एलायंस के थोड़े वोट कम हो जाएंगे। मोदीजी, ये तो देश के साथ गद्दारी है।पीएम मोदी इंडिया गठबंधन से डरे हुए हैं… हमारे नारे में ही है ‘जुड़ेगा भारत, जीतेगा इंडिया’। कुछ दिन पहले तक यह वोट फॉर इंडिया बोलते थे और अब भारत लिख रहे हैं। भारत और इंडिया में क्या अंतर है। भारत ही इंडिया है, इंडिया ही भारत है।
सुप्रीम कोर्ट ने इंडिया बनाम भारत के मुद्दे को लेकर 2016 में एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया था और कहा था कि नागरिक अपनी इच्छा के अनुसार देश को इंडिया या भारत कहने के लिए स्वतंत्र हैं, जिसमें यह निर्देश देने की मांग की गई थी कि भारत को सभी उद्देश्यों के लिए ‘भारत’ कहा जाए। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश टी एस ठाकुर और न्यायमूर्ति यू यू ललित की पीठ ने महाराष्ट्र के निरंजन भटवाल द्वारा दायर जनहित याचिका इसे खारिज करते हुए कहा था “भारत या इंडिया? आप इसे भारत कहना चाहते हैं, आगे बढ़ें। कोई इसे इंडिया कहना चाहता है, उसे इंडिया कहने दें।
संविधान का अनुच्छेद 1(1) कहता है, “इंडिया, जो कि भारत है, राज्यों का एक संघ होगा. ” जनहित याचिका का विरोध करते हुए, गृह मंत्रालय (एमएचए) ने कहा था कि संविधान के प्रारूपण के दौरान संविधान सभा द्वारा देश के नाम से संबंधित मुद्दों पर व्यापक रूप से विचार-विमर्श किया गया था और अनुच्छेद 1 में खंडों को सर्वसम्मति से अपनाया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने भी याचिकाकर्ता पर कड़ी आपत्ति जताई थी और उससे पूछा था कि क्या उसे लगता है कि इसका इससे कोई लेना-देना नहीं है और उसे याद दिलाया कि जनहित याचिकाएं गरीबों के लिए हैं। आपको लगता है कि हमारे पास करने के लिए और कुछ नहीं है। याचिका में एनजीओ और कॉरपोरेट्स को यह निर्देश देने की भी मांग की गई थी कि वे सभी आधिकारिक और अनौपचारिक उद्देश्यों के लिए भारत शब्द का इस्तेमाल करें।
जनहित याचिका में कहा गया था कि देश के नामकरण के लिए संविधान सभा के समक्ष प्रमुख सुझाव “भारत, हिंदुस्तान, हिंद और भारतभूमि या भारतवर्ष और उस तरह के नाम” थे। संविधान के प्रथम अनुच्छेद में ही हमलोगों ने अपने देश का नाम इंडिया और भारत दाेनों अंगीकार किया है। राजनीतिक पसंद और नापसंद से कारण हम संविधान की तौहीन नहीं कर सकते हैं। दरअसल भाजपा नेताओं की न तो स्वतंत्रता संग्राम में कोई भूमिका थी और न ही संविधान के निर्माण में इनका कोई योगदान था। इसलिए ऐसी चीजों के प्रति इन लोगों में संवेदनशीलता का पूर्ण अभाव रहना स्वाभाविक है।