Rajim-Navapara

Rajim-Navapara: धर्म -धरा राजिम से मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम का हैं गहरा नाता … त्रेतायुग में प्रभु रामचंद्र चौमासा कमलक्षेत्र में बिताया,इसी दरमियान देवी सीता ने त्रिवेणी संगम नदी में स्नान का बालू से शिवलिंग बनाया

Featured धर्म राज्य-छत्तीसगढ़

 

‌Rajim-Navapara: डीके ठाकुर/(ब्यूरो चीफ ) गरियाबंद -राजिम-नवापारा । अयोध्या में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा को लेकर पूरे देश में उत्साह का माहौल है। कलश में लेकर आए अक्षत का हर घर वितरण हो रहा है तथा उन्हें आमंत्रित भी किया जा रहा है जिसके चलते धर्म-कर्म का माहौल बना हुआ है। जानकारी के मुताबिक धर्म नगरी राजिम में भगवान रामचंद्र वनवास काल के दौरान महर्षि लोमस से मिलने के लिए त्रेता युग में नदी मार्ग से होते हुए त्रिवेणी संगम पहुंचे हुए थे उन्होंने तट पर स्थित आश्रम में महर्षि लोमस से मिले और कमलक्षेत्र में ही चौमासा व्यतीत किया था। डां. मन्नूलाल यदु अपने लेख में लिखा हैं कि रामचंद्र चौमासा रुककर यहां उपस्थित आसुरी शक्तियों का समूल नाश किया था। उनके साथ भाई लक्ष्मण और अर्धांगिनी देवी सीता मौजूद थे। वह तुरतुरिया, शिवरीनारायण, खरौद, मल्हार, सिरपुर, आरंग होते हुए फिंगेश्वर के मांडव्य ऋषि आश्रम से राजिम आए और पंचकोशीय यात्राएं की। रामचंद्र के अतरमरा के अत्रि आश्रम पहुंचने की भी जानकारी मिलती है। वह सिरक्ट्टी होते हुए धमतरी के मधुबन से होकर दक्षिण की ओर निकल पड़े थे।

Rajim-Navapara: त्रिवेणी संगम में देवी सीता ने बालू से बनाया शिवलिंग

Rajim-Navapara: वनवास काल में रामचंद्र ने रामेश्वरम में रामेश्वर महादेव की स्थापना किया था। देवी सीता ने त्रिवेणी संगम में स्नान करने के बाद बालू से शिवलिंग बनाकर पूजा अर्चना की थी तथा अभिषेक भी किया था। उन्होंने अपने कुल के आराध्य देव के आराधना की थी इसलिए इस शिवलिंग का नाम कुलेश्वरनाथ महादेव पड़ गया। रामायण काल के दोनों मूर्ति राम और सीता ने शिवलिंग की स्थापना किया जिनमें से देवी सीता द्वारा स्थापित शिवलिंग को विश्व में विरले माना गया है। नदी में ही विशाल मंदिर का निर्माण किया गया है। 17 फीट ऊंची जगती तल पर मंदिर को आकार दिया गया है। कई वर्षों से बाढ़ आने के बावजूद यह अभी भी अपने स्थान पर अडिग है। जो श्रद्धालु एवं पर्यटकों तथा कलानुरागियों के मन में कौतूहल पैदा करती हैं। मंदिर परिसर में पीपल का वृक्ष है। यहां दो गर्भगृह है। एक में भगवान कृष्ण नाथ महादेव का शिवलिंग है तथा दूसरा में देवी दुर्गा विराजमान है। मंदिर का निर्माण छठवीं शताब्दी माना गया है।

Rajim-Navapara: नदी तट पर आज भी लोमस ऋषि आश्रम मौजूद

Rajim-Navapara: समय के साथ-साथ कई प्राचीन स्थलों का अस्तित्व समाप्त हो गया है परंतु संगम नदी तट पर आज भी लोमस ऋषि आश्रम मौजूद है। पहले यहां बेल पेड़ों की अधिकता थी लेकिन अब पेड़ कम बिल्डिंग ज्यादा दिख रही है। आए दिन यहां पर नए-नए भवन बनते जा रहे हैं। यदि इसी तरह से ईट सीमेंट और छड़ का उपयोग करते रहे तो आश्रम का नाम बदलकर धर्मशाला रखने की आवश्यकता होगी।आश्रम के मध्य में लोमस ऋषि का मंदिर बना हुआ है जिसमें आदम काद आकार में ऋषि की प्रतिमा प्रस्थापित है। कागभूसुंडी सामने ही बैठे हुए हैं। इसी छत से लगा हुआ राम लक्ष्मण सीता तथा हनुमान की प्रतिमा मंदिर में स्थापित है। महर्षि लोमस कलपांतजीवी है वर्तमान समय में भी महर्षि लोमस के यहां मौजूद होने की जानकारी मिलती है। पूर्व में एक बात उभर कर सामने आई थी कि अल सुबह लोमस ऋषि नदी में स्नान करते हैं उनके चलने के पांव के निशान रेत में कई बार देखे जा चुके हैं। विभिन्न पुराण में इनका वर्णन मिलता है तथा लोमस ऋषि ने कई ग्रंथ की रचना भी की थी।

Rajim-Navapara: रामवनगमन पथ में रामचंद्र के बने हैं विशाल प्रतिमा

Rajim-Navapara: राजिम राम वन गमन पथ के अंतर्गत आता है जिसके कारण पिछली प्रदेश सरकार ने रामचंद्र की विशाल प्रतिमा का निर्माण किया है। 21 फीट से भी ज्यादा ऊंची प्रतिमा लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है इनके परकोटे पर रामायण कालीन अनेक दृश्य उकेरे गए हैं जो त्रेता युग में घटित घटनाओं के बारे में जानकारी देते हैं। प्रभु रामचंद्र के अनेक किस्से और कहानियां को यह अंचल छिपाए हुए हैं। जरूरत है इन्हें उकेरने की, ताकि आज के लोगों को भी पता चलें। राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयागराज माना गया है। उनके धार्मिक महत्व को देखते हुए प्रदेश सरकार के द्वारा पिछले 15 वर्षों से लगातार कुंभ मेला का आयोजन हो रहा था इस बार भी उनके आयोजन होगी। 15 दिनों तक श्रद्धालुओं का भव्य मेला लगता है जिसमें देश-विदेश से बड़ी संख्या में लोग उपस्थित होते हैं।