संयुक्त परिवार में मिले मूल्यों को याद कर भावुक हुए कलाकार!
मुंबई, मई 2025: संयुक्त परिवार का मतलब सिर्फ एक छत के नीचे एक साथ रहना ही नहीं होता, बल्कि यह एक जीवनशैली है, जहाँ साझा संस्कार, गहरे रिश्ते और उम्रभर की यादें पनपती हैं। यहाँ बच्चे समझौते की कला सीखते हैं, एकता में शक्ति पाते हैं और रिश्तों की अहमियत को महसूस करते हैं। इंटरनेशनल फैमिली डे के मौके पर एण्डटीवी के कलाकारों ने संयुक्त परिवार में पले-बढ़े बचपन की उन सीखों और संस्कारों के बारे में बात की, जिन्होंने उनके व्यक्तित्व को गहराई से गढ़ा। इन कलाकारों में शामिल हैं – स्मिता सेबल (‘भीमा‘ की धनिया), सोनल पवार (‘हप्पू की उलटन पलटन‘ की मलाइका) और विदिशा श्रीवास्तव (‘भाबीजी घर पर हैं‘ की अनीता भाबी)।
‘भीमा‘ की धनिया ऊर्फ स्मिता सेबल ने कहा, ‘‘मेरी परवरिश 12 लोगों के संयुक्त परिवार में हुई, जहां हर दिन ने मुझे एकजुटता और बाँटने का असली मतलब सिखाया। हमारे घर में एक ही टेबल पर सब नहीं बैठ सकते थे, इसलिए खाने के लिए दो राउंड लगते थे, लेकिन वही मेल-जोल का सबसे प्यारा समय होता था। उन खानों में हँसी, कहानियाँ और अपनापन होता था। वहीं से मैंने जाना कि आसपास के लोगों से जुड़ाव कितना ज़रूरी होता है। आज भी जब मैं ‘भीमा‘ के सेट पर होती हूँ, तो अपने को-एक्टर्स के साथ बैठकर खाना ज़रूर खाती हूं। हम साथ हंसते हैं, बातें करते हैं और वो पल घर जैसा लगता है। मुझे लगता है, साथ होने से हर रिश्ता मजबूत होता है और यही सीख मैं आज भी अपने साथ लेकर चलती हूं।‘‘
सोनल पंवार ऊर्फ ‘हप्पू की उलटन पलटन‘ की मलाइका ने कहा, ‘‘संयुक्त परिवार मेरी ज़िंदगी का पहला स्कूल था, जहां मैंने जीवन के असली मूल्य सीखे। मेरे कज़िन्स मेरे सबसे अच्छे दोस्त थे-हम साथ खेलते, लड़ते और हर खुशी को मिलकर मनाते थे। कभी गली में क्रिकेट खेलना, तो कभी बिजली जाने पर छत पर तारों के नीचे सोना, ऐसे ही पलों ने सिखाया कि खुशियाँ बांटने से बढ़ती हैं। आज भी वो अपनापन मेरे अंदर जिंदा है। मुंबई में भी मुझे ऐसे दोस्त मिले हैं, जो परिवार जैसे हैं और मैं हमेशा उनके लिए हाज़िर रहती हूं। सेट पर भी हम साथ में गेम्स खेलते हैं, एक-दूसरे का ख्याल रखते हैं। संयुक्त परिवार में पलकर मैंने रिश्तों को संभालना और निभाना सीखा और यही सीख ज़िंदगी भर साथ चलने वाली है।‘‘
विदिशा श्रीवास्तव ऊर्फ ‘भाबीजी घर पर हैं‘ की अनीता भाबी ने कहा, ‘‘संयुक्त परिवार में बीता बचपन, हर रिश्ते में निस्वार्थ साथ देने की सीख बन गया। हाँ, बचपन में टीवी का रिमोट हो या आखिरी बिस्किट, इन छोटी-छोटी बातों पर खूब झगड़े होते थे। लेकिन जब बात साथ देने की आती थी, तो पूरा परिवार एक साथ खड़ा होता था। उसी माहौल ने मुझे सिखाया कि अपनों के लिए हमेशा मज़बूती से खड़े रहना कितना जरूरी है। आज भी, चाहे परिवार हो, दोस्त हों या साथी कलाकार – अगर किसी को मेरी ज़रूरत होती है, तो मैं बिना किसी सवाल के हाज़िर रहती हूं। संयुक्त परिवार की यही सीख -‘अपनापन, निष्ठा और निस्वार्थ प्रेम‘ मेरी ज़िंदगी की सबसे बड़ी पूंजी है।‘‘