Rajim News: डीके ठाकुर/गरियाबंद – राजिम – नवापारा । नवागांव एनीकट सूखने के बाद स्पष्ट रूप से दिख रहा है कि सोंढूर और पैरी नदी भांठा में तब्दील होते हुए दिखाई दे रहा है। चौबेबांधा पुल से आगे सोंढूर नदी पर तो रेत का नाम ही नहीं है। पूरी तरह से नदी में घास उग आए हैं और सपाट दिख रहे हैं। नवागांव की ओर मिट्टी ने परत बना ली है। मोटी परत के चलते रेत गायब हो गया है। यही दशा पैरी नदी का भी है। उल्लेखनीय है कि नदी से लगातार पिछले 20 वर्षों से रेत का उठाव होने के कारण नदी का अस्तित्व खतरनाक मोड़ पर आता हुआ दिखाई दे रहा है।
Rajim News: इसी तरह से क्षणिक फायदे के लिए प्रशासन की अनदेखी होती रही तो रेत माफिया तो मालामाल होंगे लेकिन आने वाली पीढ़ी के लिए नदी नाम नक्शे पर अच्छा लगेगा। कथा कहानियों पर सुनते वक्त मन को भा जाएगा परंतु जाकर देखने पर थोथा चना बाजे घना वाली कहावत को चरितार्थ करेगी। यही दशा बेलाही पुल नवापारा के पास की है। यहां तो घास ही घास हैं। यह रेत ही नहीं दिखाई देते।
Rajim News: पत्थर और मिट्टी ही दिखते हैं। नगरवासी गंदे पानी पर नहाने के लिए विवश है। गर्मी लगते ही पानी का लेवल नीचे चला जाता है। निस्तारण के लिए दिक्कत हो रही है। बताना होगा कि सोंढूर, पैरी एवं महानदी तीनों मिलकर राजिम में त्रिवेणी संगम बनाती है।राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग राज कहा जाता है। अस्थि विसर्जन, पिंडदान, स्नान, पूजन इत्यादि के लिए बड़ी संख्या में देशभर से लोग पहुंचते हैं। नदी में पानी नहीं होने से लोगों की श्रद्धा के साथ खिलवाड़ हो रहा है। बचे मैंले कुचैले पानी में ही सारे कृत्य करने की मजबूरी है। यहां अलग-अलग चार एनीकट बनाए गए हैं। पांचवा मिनी एनीकट महानदी पर निर्माणाधीन है।जानकारी के मुताबिक संगम एनीकट 2008 में बना।
Rajim News: नवागांव एनीकट सन् 2015 में तैयार हुआ। रावड़ एनीकट तथा टीला एनीकट भी बनाया गया है। न ही रावड़ एनीकट में पानी है और ना संगम तथा नवागांव एनीकट में पानी की एक बूंद है। इनको बनाने में ही करोड़ों रुपया खर्चा आया है सरकार ने तो इसी अनुमान के साथ इनका निर्माण किया था की त्रिवेणी संगम के अलावा आसपास के लोगों को भीषण गर्मी में भी पानी की दिक्कत ना हो। परंतु दिक्कत बरकरार है और एनीकट सुखा हुआ है। सुखी नदी के कारण रेत का खेल भी चरम पर है। इस नदी में गरियाबंद जिला, धमतरी जिला और रायपुर जिला का सीमा लगा हुआ है। 3 जिले का फायदा उठाकर खेल चल रहा है और नदी भांठा में तब्दील हो रहा है।जो चिंताजनक स्थिति को निर्मित कर रही है।
Rajim News: नदी के अस्तित्व को बचाने के लिए रेत का उठाव बंद करना जरूरी हो गया है। इनके अलावा नदी की साफ सफाई के साथ मूल रूप से छेड़छाड़ बंद होना आवश्यक है। 90 के दशक में नदी में 12 महीना पानी रहता था। पानी का घर चलता था कभी भी लोगों को स्नान करने में दिक्कत नहीं आती थी। पांव रखते ही रेत पड़ने के कारण साफ सुथरा दिखता था। अब तो साफ सुथरा गंदा दिखाई देता है। समय के साथ साथ नदी की स्वच्छता पर प्रश्नचिह्न लग गया है। पहले नदी में बाड़ी लगते थे। किसानों को गर्मी के चार महीना रोजगार मिलता था। अब सब कुछ बंद हो गया है। पानी का लेवल नीचे गिरने के कारण सब कुछ समाप्त होता जा रहा है।