Rashtriya Swayamsevak Sangh

Rashtriya Swayamsevak Sangh: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का 100 साल का गौरवशाली इतिहास, कब और कैसे हुई RSS की स्थापना, कैसे बना दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन, यहां पढ़ें पूरी खबर

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Rashtriya Swayamsevak Sangh: नई दिल्ली। दुनिया के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना केशव बलराम हेडगेवार ने की थी। भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के लक्ष्य के साथ 27 सितंबर 1925 को विजयदशमी के दिन आरएसएस की स्थापना की गई थी। और अगले साल 2025 में ये संगठन 100 साल का हो जाएगा। नागपुर के अखाड़ों से तैयार हुआ संघ मौजूदा समय में विराट रूप ले चुका है। आरएसएस साफ तौर पर हिंदू समाज को उसके धर्म और संस्कृति के आधार पर शक्तिशाली बनाने की बात करता है। हर साल विजयादशमी के दिन संघ स्थापना के साथ ही शस्त्र पूजन की परम्परा निभाई जाती है, देश भर में पथ संचलन निकलते हैं।

Rashtriya Swayamsevak Sangh: 0.27 लोगों ने मिलकर की थी शुरुआत

Rashtriya Swayamsevak Sangh: संघ के प्रथम सरसंघचालक हेडगेवार ने अपने घर पर 17 लोगों के साथ गोष्ठी में संघ के गठन की योजना बनाई. इस बैठक में हेडगेवार के साथ विश्वनाथ केलकर, भाऊजी कावरे, अण्णा साहने, बालाजी हुद्दार, बापूराव भेदी आदि मौजूद थे।

Rashtriya Swayamsevak Sangh: संघ का क्या नाम होगा, क्या क्रियाकलाप होंगे सब कुछ समय के साथ धीरे-धीरे तय होता गया. उस वक्त हिंदुओं को सिर्फ संगठित करने का विचार था.।यहां तक कि संघ का नामकरण ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ भी 17 अप्रैल 1926 को हुआ और इसी दिन हेडगेवार को सर्वसम्मति से संघ प्रमुख चुना गया, लेकिन सरसंघचालक वे नवंबर 1929 में बनाए गए।

Rashtriya Swayamsevak Sangh: 0.ऐसे नाम पड़ा आरएसएस

Rashtriya Swayamsevak Sangh: राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ यह नाम अस्तित्व में आने से पहले विचार मंथन हुआ. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जरीपटका मंडल और भारतोद्वारक मंडल इन तीन नामों पर विचार हुआ। बाकायदा वोटिंग हुई नाम विचार के लिए बैठक में मौजूद 26 सदस्यों में से 20 सदस्यों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को अपना मत दिया, जिसके बाद आरएसएस अस्तित्व में आया।

Rashtriya Swayamsevak Sangh: ‘नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे’ प्रार्थना के साथ पिछले कई दशकों से लगातार देश के कोने कोने में संघ की शाखायें लग रही हैं. हेडगेवार ने व्यायामशालाएं या अखाड़ों के माध्यम से संघ कार्य को आगे बढ़ाया. स्वस्थ और सुगठित स्वयंसेवक होना उनकी कल्पना में था।

Rashtriya Swayamsevak Sangh: 0.संघ परिवार में 80 से ज्यादा समविचारी या आनुषांगिक संगठन,40 देशों में शाखाएं

Rashtriya Swayamsevak Sangh: आरएसएस के एक करोड़ से ज्यादा प्रशिक्षित सदस्य हैं। संघ परिवार में 80 से ज्यादा समविचारी या आनुषांगिक संगठन हैं। दुनिया के करीब 40 देशों में संघ सक्रिय है। मौजूदा समय में संघ की 56 हजार 569 से अधिक दैनिक शाखाएं लगती हैं। करीब 13 हजार 847 साप्ताहिक मंडली और 9 हजार मासिक शाखाएं भी हैं। देश की हर तहसील और करीब 55 हजार गांवों में शाखा लग रही हैं।

Rashtriya Swayamsevak Sangh: .तीन बार लगा प्रतिबंध

Rashtriya Swayamsevak Sangh: संघ ने अपने लंबे सफर में कई उपलब्धियां अर्जित कीं जबकि तीन बार उसपर प्रतिबंध भी लगा. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या को संघ से जोड़कर देखा गया, संघ के दूसरे सरसंघचालक गुरु गोलवलकर को बंदी बनाया गया। लेकिन 18 महीने के बाद संघ से प्रतिबंध हटा दिया गया। दूसरी बार आपातकाल के दौरान 1975 से 1977 तक संघ पर पाबंदी लगी। तीसरी बार छह महीने के लिए 1992 के दिसंबर में लगी, जब 6 दिसंबर को अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिरा दी गई थी।

Rashtriya Swayamsevak Sangh: .संघ ने शुरू से अलग रास्ता अख्तियार किया

Rashtriya Swayamsevak Sangh: आरएसएस ना तो गांधी की अगुवाई में चलने वाले आंदोलन में हिस्सेदार बना, न कांग्रेस से निकले नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आंदोलन में साझेदार । आरएसएस के मुखपत्र द ऑर्गनाइजेशन ने 17 जुलाई 1947 को नेशनल फ्लैग के नाम से संपादकीय में लिखा कि भगवा ध्वज को भारत का राष्ट्रीय ध्वज माना जाए। 22 जुलाई 1947 को जब तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज माना गया तो द ऑर्गेनाइजेशन ने ही इसका जमकर विरोध किया। काफी लंबे समय तक संघ तिरंगा नहीं फहराता था। हाल ही में आरएसएस ने अपने को बदला है। यहां तक कि आरएसएस के धुर विरोधियों ने भी उसे जगह देना शुरू किया।

Rashtriya Swayamsevak Sangh: .संघ का एक चेहरा ये भी रहा

Rashtriya Swayamsevak Sangh: संघ ने धीरे-धीरे अपनी पहचान एक अनुशासित और राष्ट्रवादी संगठन की बनाई, 1962 में चीन के धोखे से किए हमले से देश सन्न रह गया था। उस वक्त आरएसएस ने सरहदी इलाकों में रसद पहुंचाने में मदद की थी। इससे प्रभावित होकर प्रधानमंत्री नेहरू ने 1963 में गणतंत्र दिवस की परेड में संघ को बुलाया था। 1965 में पाकिस्तान से युद्ध के दौरान दिल्ली में ट्रैफिक व्यवस्था सुधारने में संघ ने मदद की थी। साल 1977 में आरएसएस ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को विवेकानंद रॉक मेमोरियल का उद्घाटन करने के लिए बुलाया था।